*🚩🚩भाव भरयो निमंत्रण* 🚩🚩
बाबा खाटू श्याम जी की असीम कृपा से हमें *17 November 2023, दिन शुक्रवार* को श्याम बाबा का संकीर्तन आयोजित करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ हैl
आपसे आग्रह है कि आप सभी सहपरिवार इष्ट मित्रों सहित पधारें और बाबा श्याम के भजनों का खूब आनंद ले l
*ज्योति प्रचण्ड - सायं 5:00 बजे से प्रभु इच्छा तक*
*राधा रसोई की व्यवस्था भी रहेगी*
*स्थान : रामलीला मैदान, क्रॉसिंग रिपब्लिक, ग़ाज़ियाबाद*
*आयोजक : करने वाले श्याम, कराने वाले श्यामा*
*निवेदक : जय श्री श्याम दीवाना मंडल,क्रॉसिंग रिपब्लिक, ग़ाज़ियाबाद*
खाटूश्याम बाबा का इतिहास
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित बाबा खाटू श्याम की महिमा बहुत अधिक बताई जाती है। भगवान कृष्ण के अवतार का यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता है की खाटूश्याम जी भगवान कृष्ण के कलयुग अवतार ही है। खाटू श्याम जी मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन को आते है और बाबा से मनवांछित फल की कामना करते है।
जितने अद्वितीय बाबा खाटू श्याम जी है उतनी ही रोचक उनके जीवन की कथा है। बताया जाता है की इस मंदिर का इतिहास महाभारत के युद्ध से सम्बंधित है, ऐसे में आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बाबा खाटू श्याम जी की जीवन कथा और उनके मंदिर से जुड़े इतिहास के बारे में बताने जा रहे है।
कौन है खाटू श्याम बाबा
बाबा खाटू श्याम घटोत्कच के पुत्र और पांडवों में महाबली भीम के पौत्र थे, जिनका नाम बर्बरिक था। धार्मिक कथा के अनुसार माना जाता है की भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरिक की शक्तियों और गुणों से प्रभावित होकर उन्हें यह वरदान दिया की वह कलियुग में उनके नाम से पूजे जाएंगे।
जितने अद्वितीय बाबा खाटू श्याम जी है उतनी ही रोचक उनके जीवन की कथा है। बताया जाता है की इस मंदिर का इतिहास महाभारत के युद्ध से सम्बंधित है, ऐसे में आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बाबा खाटू श्याम जी की जीवन कथा और उनके मंदिर से जुड़े इतिहास के बारे में बताने जा रहे है।
खाटू श्याम जी की जीवन कथा
महाभारत के समय कौरवों ने पांडवो के साथ अनेक छल किए। लाक्षागृह की घटना के बाद पांडव अपनी माता के साथ वन में रहने लगे और कुछ समय में भीम ने माता कुंती की आज्ञा से हिडिंबा नामक राक्षसी से विवाह कर लिया। शादी के बाद हिडिंबा ने पुत्र को जन्म दिया जिसे घटोत्कच के नाम जाना जाने लगा। घटोत्कच बहुत अधिक शक्तिशाली था, लेकिन उससे भी अधिक शक्तिशाली था उसका पुत्र बर्बरीक।
बर्बरीक देवी का परम भक्त था और उनकी उपासना करता था। बर्बरीक की साधना से प्रसन्न होकर देवी ने उसे वरदान दिया। इस वरदान में उसे तीन अलौकिक बाण मिले जो लक्ष्य को भेदकर पुनः लौट आते थे। ऐसे दिव्य और अलौकिक बाण प्राप्त कर बर्बरीक अपराजेय हो गया था।
जब महाभारत के युद्ध की घोषणा हुई तो बर्बरीक को भी युद्ध देखने की इच्छा हुई, जिस कारण वह कुरुक्षेत्र पहुंच गया। जब भगवान श्री कृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्हें ज्ञात हो गया था की यदि बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो पांडवो की हार तय है। बर्बरीक को युद्ध में जाने से रोकने के लिए श्री कृष्ण ने गरीब ब्राह्मण का वेश बनाया और फिर बर्बरीक के सामने गए। एक अनजान की भांति श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र की ओर क्यों जा रहे हो? तब जवाब में बर्बरीक ने कहा की वह एक दानवीर योद्धा है, जो अपने एक बाण से महाभारत के युद्ध का परिणाम तय कर सकता है। यह सुनकर श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षा लेने का सोचा और कहा - पीपल के इस वृक्ष के सभी पत्तों को भेदकर बताओ। तब बर्बरीक के एक बाण से पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया। एक पत्ता बच गया था जो की भगवान के पैर के नीचे था, इसलिए बाण उनके पैर पर ही ठहर गया।
बर्बरीक के इस अद्भुत शौर्य को देखकर श्री कृष्ण हैरान हो गए। तब भगवान ने कुछ सोचा और बर्बरीक से दान देने को कहा। बर्बरीक ने पूछा की आपको क्या दान चाहिए, तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। यह सुनकर बर्बरीक समझ गया था की यह कोई सामान्य ब्राह्मण नहीं है और उनसे उनका वास्तविक रूप बताने के लिए कहा। तब श्री कृष्ण ने अपना वास्तविक रूप दिखाया और फिर बर्बरीक प्रसन्नता के साथ शीश दान में देने को तैयार हो गया।
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन बर्बरीक ने स्वयं अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया, लेकिन उससे पहले युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की। तब श्री कृष्ण ने उनकी यह इच्छा पूरी करने के लिए एक ऊंचे स्थान पर उसका शीश रख दिया ताकि वह युद्ध की सभी गतिविधियों का अवलोकन कर सके।
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला जिसके बाद पांडवो की जीत हुई, जीतने के बाद उन पांचों में युद्ध की जीत का श्रेय लेने हेतु बहस हुई। तब भगवान उन सभी को बर्बरीक के पास निर्णय के लिए ले गए, चूँकि बर्बरीक ने युद्ध के सभी पहलुओं को देखा था तो वह इस विषय पर सही निर्णय लेने में सक्षम था। तब बर्बरीक के शीश ने बताया कि वे भगवान श्री कृष्ण की वजह से ही यह युद्ध जीते है।
यह बात सुनकर श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बर्बरीक के शीश को वरदान दिया की वे कलयुग में उनके श्याम नाम से पूजे जाएंगे। उन्हें भक्त द्वारा स्मरण करने मात्र से उनका कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी।
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास
माना जाता है की राजस्थान के खाटू गांव में कलियुग के शुरुआत के समय में ही बर्बरीक का शीश मिला था। यह शीश देखकर लोग थोड़ा हैरान हो गए, की आखिर यह किसका शीश हो सकता है और इसका क्या किया जाए। तब सभी की सम्मति से यह शीश एक पुजारी को सौंपा गया। इस घटना के बाद वहां के एक शासक को मंदिर का निर्माण करने को लेकर स्वप्न आया, जिसके बाद उनके कहने के अनुसार वहां एक मंदिर का निर्माण कराया गया। इसके साथ ही वहां खाटू श्याम की मूर्ति की भी स्थापना की गई।
खाटू श्याम मंदिर की बहुत अधिक मान्यता बताई जाती है। माना जाता है यदि भक्त मन से बाबा के दरबार में अपनी दुःख या परेशानियां बताते है तो वह उनके सभी कष्ट दूर कर देते है, साथ ही मनवांछित फल भी प्रदान करते है। व्यक्ति को जीवन में एक बार खाटू श्याम बाबा के दर्शन हेतु अवश्य जाना चाहिए।